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अरुण योगीराज   अयोध्या के श्री राम लला के शिल्पकार

विरासत और हुनर की छेनी से तराशे गए मूर्तिकार

पांच पीढ़ियों से मूर्तिकारों के  खानदान में जन्मे अरुण योगीराज भारत में सिर्फ मूर्तियां नहीं गढ़ते, वह अपना नाम देश के सबसे अधिक मांग वाले  वाले कलाकार के रूप में तराश रहे हैं। उनको आज हम विशेष रूप से तब जान रहें हैं जब अयोध्या में श्री राम लला  की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है और श्री राम की मूर्ति के मूर्ति कार हैं अरुण योगिराज, अयोध्या के श्री राम लला के शिल्पकार l

उनकी छेनी राष्ट्र की मांग के ताल पर नाचती है, पूरे देश में वीरों की आकृतियों को उकेरती है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अरुण की प्रतिभा की सराहना कर चुके हैं, जो उनके कलात्मक चुंबकत्व का प्रमाण है।

लेकिन केवल अरुण की कलात्मकता विरासत में मिली है ऐसा हम नहीं कह सकते बल्कि यह तो भाग्य और दृढ़ता दोनों से तराशी गई कहानी है। उनकी रगों में हथौड़े और छेनी की लय दौड़ती है, जो उनके कुशल मूर्तिकार पिता योगीराज से विरासत में मिली है और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी की प्रतिध्वनि करती है, जिन्होंने मैसूर के राजाओं का संरक्षण प्राप्त किया था।

अरुण ने एमबीए और कॉर्पोरेट जीवन के बाद भी उनके पदचिन्हों पर चलते हुए यह साबित कर दिया कि कला का बुलावा कितना प्रबल होता है। 2008 से, वह लगातार मूर्तिकला के क्षेत्र में झंडे गाड़ रहे हैं, जिनकी झलक हमें उनके द्वारा निर्मित  विस्मयकारी मूर्तियों  की लंबी कतार को देखकर हम जान सकते हैं l

30 फुट ऊंचे सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को कोई कैसे भूल सकता है, जो अरुण की रचना है और इंडिया गेट के नीचे पहरेदारी कर रही है। यह कांस्य का विशालकाय स्मारक प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा और अरुण के अपने जुनून से जन्मा है, जो स्वतंत्रता सेनानी की विरासत का सम्मान करता है।

इस भव्य श्रद्धांजलि से पहले, अरुण ने प्रधानमंत्री को बोस की एक छोटी मूर्ति भेंट की थी, जिससे  उन्हें एक बार फिर से सराहना अर्जित की।

21 फुट ऊंचे मैसूर के हनुमान से लेकर केदारनाथ के 12 फुट ऊंचे आदि शंकराचार्य तक, अरुण की कला उनके बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है। उन्होंने अंबेडकर, रामकृष्ण परमहंस और नंदी की  पाषाण शिला में प्राण फूंके हैं, प्रत्येक रचना पत्थर और आत्मा का एक सिम्फनी है। यहां तक कि मैसूर के शाही परिवार ने भी उनकी कलात्मक क्षमता के सामने झुककर उन्हें सम्मान और मान्यता दी है।

पुरस्कार और सम्मान अरुण का पीछा करते हैं ।

पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान ने उनकी कार्यशाला में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर उन्हें व्यक्तिगत मुहर लगाई। अरुण ने नलवाड़ी पुरस्कार, शिल्प कौस्तुभ और राज्योत्सव पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों को गर्व से पहना है, जो उनकी टोपी में पहले से ही लगे पंखों में और इजाफा करते हैं।

लेकिन असली रत्न उन कामों में छिपे हैं जिन्हें उन्होंने पूरा किया है। भारत की सबसे बड़ी एकल पत्थर की सफेद संगमरमर की रामकृष्ण परमहंस की मूर्ति बनाने से लेकर मैसूर के महाराजा को अमर बनाने तक, अरुण की छेनी इतिहास और भक्ति के ताल पर नाचती है। वह सिर्फ आकृतियां नहीं, बल्कि कहानियां गढ़ते हैं, पीढ़ियों तक पत्थर में कहानियां उकेरते हैं।

अरुण योगीराज सिर्फ एक मूर्तिकार नहीं हैं; वरन वह तो एक विरासत बनाने वाली महान विभूति हैं जो  छेनी के हर एक प्रहार के साथ, वह न केवल पत्थर को आकार देते हैं, बल्कि भारतीय कला के इतिहास में अपना स्थान भी मजबूत करते हैं, यह साबित करते  हुए कि प्रतिभा और समर्पण से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।

 अरुण योगीराज: मूर्तियों के जादूगर

1983 में मैसूर में जन्मे अरुण योगीराज भारत के एक प्रतिभाशाली मूर्तिकार हैं। उनकी कला ने न सिर्फ देश बल्कि विदेशों तक धूम मचाई है। आइए उनकी ज़िंदगी और कला की एक झलक लें:

अरुण योगीराज:प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मैसूर के एक मूर्तिकार परिवार में पांचवीं पीढ़ी के रूप में जन्मे।

उनके पिता योगीराज और दादा बसवन्ना शिल्पी भी विख्यात मूर्तिकार थे।

एमबीए करने के बाद कुछ समय तक प्राइवेट कंपनी में काम किया, लेकिन 2008 में मूर्तिकला को पूरा समय देने लगे।

प्रसिद्ध कृतियां:

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट ऊंची प्रतिमा, जो इंडिया गेट के नीचे स्थापित है।

अंबेडकर, रामकृष्ण परमहंस, हनुमान और नंदी आदि की मूर्तियां।

मैसूर के महाराजा की मूर्ति।

व्यक्तिगत जीवन:

पत्नी विजेथा मोहन और दो बच्चे।

योग और ध्यान का नियमित अभ्यास करते हैं।

बहुमुखी मूर्तिकार, किसी भी विषय पर किसी भी माध्यम से मूर्ति बना सकते हैं।

कुशल चित्रकार, चित्रकार और फोटोग्राफर भी हैं।

प्राप्त सम्मान:

उनके कार्यों को मैसूर के शाही परिवार ने भी सराहना दी है।

कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित।

अरुण योगीराज अपनी मूर्तियों के जरिए इतिहास को तराश रहे हैं। उनकी सफरनामा प्रेरणादायक है और उनके आगे एक उज्ज्वल भविष्य का इंतजार है।

अरुण योगीराज: मूर्तिकला का सफर और उपलब्धियां

2008 में अरुण ने पूर्णकालिक रूप से मूर्तिकला के क्षेत्र में कदम रखा।

प्रसिद्ध कृतियां:

इंडिया गेट पर अमर ज्योति के पीछे स्थापित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट ऊंची प्रतिमा ने उन्हें देश-विदेश में प्रसिद्ध किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मूर्ति की सराहना की।

केदारनाथ में 12 फीट ऊंची आदि शंकराचार्य की मूर्ति उनकी बहुमुखी प्रतिभा का उदाहरण है।

अरुण का पोर्टफोलियो विशाल है, जिसमें चुनचनकट्टे में 21 फीट ऊंची हनुमान मूर्ति, 15 फीट ऊंची डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा, एक विशाल नंदी की मूर्ति और मैसूर के राजा जयचामराजेंद्र वोडेयार की 14.5 फीट ऊंची सफेद अमृतमहल की मूर्ति शामिल है।

उन्होंने मैसूर में ही छह फीट ऊंची नंदी की मूर्ति, बानशंकरी देवी की छह फीट ऊंची मूर्ति और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की अमृतमहल प्रतिमा भी बनाई है।

2016 में उन्होंने जयचामराजेंद्र वोडेयार की 14 फीट ऊंची सफेद अमृतमहल ( संगमरमर ) मूर्ति बनाई थी।

हाल ही में, उनकी गढ़ी हुई रामलला की मूर्ति को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में स्थापित करने के लिए चुना गया है।

अरुण योगीराज अपने शानदार हुनर से न सिर्फ पत्थरों को गढ़ रहे हैं, बल्कि इतिहास भी रच रहे हैं। उनकी उपलब्धियां आने वाले मूर्तिकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

कुछ अतिरिक्त बातें:

उनका मानना है कि कला राजनीति से बड़ी है।

वह विभिन्न माध्यमों और शैलियों में मूर्तियां बना सकते हैं।

मूर्तिकला शुरू करने के लिए पांच साल की उम्र में ही हाथ उठा लिए थे।

पिता और दादा ही उनके कला के मुख्य गुरु थे।

पौष्टिक शाकाहारी भोजन खाते हैं।

अरुण योगीराज: सम्मानों की शृंखला

मूर्तिकार अरुण योगीराज को उनकी कला के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया है। आइए उनके प्रमुख सम्मानों पर एक नज़र डालें:

2014: भारत सरकार द्वारा “दक्षिण क्षेत्र युवा प्रतिभाशाली कलाकार पुरस्कार”

2020: मैसूर जिला प्रशासन द्वारा “नलवाड़ी पुरस्कार”

2021: कर्नाटक शिल्प परिषद द्वारा मानद सदस्यता प्रदान की गई

2021: कर्नाटक सरकार द्वारा “जकनाचारी पुरस्कार” (प्रदान किए जाने की प्रतीक्षा)

शिल्प कौस्तुभ: मूर्तिकार संघ द्वारा प्रदान किया गया सम्मान

राज्योत्सव पुरस्कार: मैसूर जिला सरकार द्वारा प्रदान किया गया सम्मान

विशेष आगमन: संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने उनकी कार्यशाला का व्यक्तिगत दौरा किया

ये सम्मान अरुण योगीराज की असाधारण प्रतिभा और कला के प्रति समर्पण का प्रमाण हैं। उनकी कला सराहनीय है और आने वाले कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

अयोध्या के श्री राम लला के शिल्पकार

अयोध्या में आज, मिट्टी की खुशबू और इतिहास की गूंज के बीच, खड़ा है नए-नवे सजा राम मंदिर! अरमानों की तपिश और अनंत भक्ति की गंगा में ये मंदिर दशकों बाद आज साकार हुआ है। इसके गर्भगृह में विराजमान हैं बाल राम, जिन्हें कर्नाटक के मूर्तिकला के धुरंधर अरुण योगीराज ने काले पत्थर को प्राण देकर गढ़ा है। आज ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ के पावन पल पर मूर्ति का अनावरण हुआ और योगीराज जैसे समा न सके, खुद को धरती का “सबसे खुशकिस्मत इंसान” घोषित कर दिया।

एएनआई से बातचीत में, जैसे-जैसे दिन दिव्य रस्मों और उत्सवों की चादर ओढ़ता गया, योगीराज ने अपने पूर्वजों, परिवार और खुद राम के आशीर्वाद के प्रति अपार कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने स्वीकार किया कि कभी-कभी उन्हें  ऐसा लगता है, जैसे कि वह  किसी खूबसूरत सपने में खो गए हैं l

प्रधानमंत्री मोदी, जिन्होंने समारोह से पहले कठोर ग्यारह दिनों का अनुष्ठान किया था, उन्होंने ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ की पवित्र प्रक्रिया का नेतृत्व किया, मंदिर को अपने समर्पण की ऊर्जा से भर दिया। समारोह से ठीक पहले ही, राम लला की मूर्ति का अंतिम रूप प्रकट हुआ – कमल की पीठ पर शांत, पांच वर्षीय राजकुमार का मनमोहक चित्रण। योगीराज ने कुशलता से काले पत्थर को तराशा, इस मनमोहक मूर्ति को बड़े दिन तक छिपाए रखा था।

जैसे ही समारोह शुरू हुआ, प्रधानमंत्री मोदी ने भावुक स्वर में इसे इस “दिव्य अवसर” का हिस्सा बनने का “सबसे बड़ा सौभाग्य” बताया। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि पूरे माहौल में ‘विजयी दीपावली’ का रस घुल रहा है, मानो राम, रावण पर विजय के बाद अयोध्या लौटे हों और उसी उत्साह की लहर यहां बह रही हो।

इस तरह, अयोध्या के इस चमकते दिन में, प्राचीन मंदिर प्रार्थना, भक्ति और सपनों की मंजिल तक पहुंचने की गूंज से गूंज उठा। और हर्ष में डूबे भक्तों के बीच, खड़े थे अरुण योगीराज, उनकी छेनी धन्य थी, उनका हृदय एक मूर्तिकार के सबसे बड़े सुख से लबालब था: एक सपने को सांस देने का सौभाग्य, और भारत के इतिहास के इस गौरवशाली अध्याय में हमेशा के लिए अपना नाम अंकित करना।

अयोध्या के राम मंदिर की रामलला मूर्ति का अनोखा इतिहास

अयोध्या के राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित रामलला की मूर्ति आज करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक बन चुकी है। इस मूर्ति को बनाने वाले शिल्पकार अरुण योगीराज ने इस मूर्ति को बनाने के लिए काले पत्थर का इस्तेमाल किया है। इस पत्थर को कृष्णशिला के नाम से जाना जाता है।

कृष्णशिला एक अनोखा पत्थर है। इस पत्थर से दूध के गुणों में कोई बदलाव नहीं होता है। इसलिए इस पत्थर का इस्तेमाल दूध से अभिषेक करने वाली मूर्तियों के लिए किया जाता है। इसके अलावा, यह पत्थर किसी भी एसिड या आग या पानी से कोई रिएक्शन नहीं करता है। इसलिए यह आने वाले हजार साल से भी अधिक वक्त तक कायम रहने वाला है।

रामलला की मूर्ति को बनाने के लिए अरुण योगीराज ने एक ऋषि के समान जीवन शैली अपनाई थी। उन्होंने मूर्ति तैयार करने के पूरे समय के दौरान ‘सात्विक भोजन’, फल और अंकुरित अनाज जैसे सीमित आहार के साथ छह महीने का समय बिताया।

अरुण योगीराज की पत्नी विजेता योगीराज ने बताया कि उनके पति ने रामलला की मूर्ति को बनाने के लिए बहुत मेहनत की है। उन्होंने कहा, “हमने इसके बारे में कभी नहीं सोचा था। मगर अरुण में बहुत प्रतिभा है। उनकी कला को दुनिया भर में पहचान और सराहना मिलनी चाहिए।”

अरुण योगीराज की बनाई हुई रामलला की मूर्ति अयोध्या राम मंदिर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह मूर्ति आने वाले हजारों सालों तक हिंदुओं की आस्था का प्रतीक बनी रहेगी।

कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

रामलला की मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच है।

मूर्ति का वजन लगभग 2 क्विंटल है।

मूर्ति बनाने में लगभग 3 साल का समय लगा।

मूर्ति को बनाने के लिए 1.25 टन कृष्णशिला का इस्तेमाल किया गया।

रामलला की मूर्ति अयोध्या के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह मूर्ति हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है और आने वाले हजारों सालों तक लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

बने रहिए इसी तरह की रोचक जानकारियों के लिए l

 

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